Читать книгу वरध तकत - Aldivan Teixeira Torres, Daniele Giuffre' - Страница 10
पहली चुनौती
Оглавлениеपहली नजर में मैंने देखा कि मेरे सामने कुछ अलग सा है। मैंने चलना प्रारम्भ किया। एक कांटो से भरे उपवन में बेहतर यही होगा कि पथ पर आगे बढ़ते रहें। ऐसा लग रहा था कि जिन पत्थरों पर चलते हुए मै आगे बढ़ रहा हूँ वो मुझसे कुछ कहना चाहते हैं। क्या यह हो सकता है कि मैं सही पथ पर हूँ ? मैं उन सब चीजों के बारे में सोचता हूं जिनको मैंने अपने सपनों की खोज में पीछे छोड़ दिया: घर, खाना, अच्छे कपडे और वो मेरी गणित की किताब। क्या यह इस सब के लायक है? मुझे लगता है मैं पता लगा लूँगा। (समय बता देगा)। लगता है उस अजीब सी औरत ने मुझे सब कुछ नहीं बताया। जितना ज्यादा मै चलता हूँ, मुझे उतना ही कम मिलता है। अब जब मैं यहाँ पहुँच गया हूँ तो यह चोटी उतनी बड़ी नहीं लगती। एक प्रकाश, मुझे आगे एक प्रकाश दिखाई दे रहा है। मुझे वहाँ जाना चाहिए। मैं एक बड़ी सी जगह आ पहुँचा जहाँ सूर्य की किरणें पहाड़ के रूप को प्रतिबिंबित कर रही है। पथ अब समाप्ती की ओर आ गया है और दो अलग अलग पथ में बंट गया है। अब मैं क्या करूँ? मैं घंटो से चले जा रहा हूँ और मेरी ताकत खत्म हो गई है। मैं सुस्ताने के लिये बैठता हूँ। दो रास्ते और दो विकल्प। जिंदगी में हम कितनी बार ऐसी परिस्थितियों का सामना करते है: एक व्यवसायी, जिसे कंपनी के भविष्य या कुछ कर्मचारियों को निकालने में से किसी एक को चुनना होता है; ब्राज़ील के उत्तरपूर्वी इलाके के ग्रामीण आंचल में बसने वाली माँ को कौन से बच्चे को खाना खिलाए ये चुनना है; एक विश्वासघाती पति जिसे अपनी पत्नी और रखैल में से एक को चुनना है; खैर, जीवन में ऐसे बहुत सी अलग अलग परिस्थतियां होती है। मेरे चुनाव में फायदेमंद होगा कि महिला की सिफारिश के अनुसार मैं अपने अंतर्ज्ञान का पालन करूँ।
मैं उठता हूँ और दाईं तरफ वाले रास्ते का चुनाव करता हूं। मैं उस पर आगे बढ़ता हूँ और मुझे फिर एक बात समझ आने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। इस बार, मैं एक तालाब देखता हूं और उसके आस-पास जीव-जंतु। वो उस स्वच्छ और साफ़ पानी से अपनी ताप बुझा रहे है। मैं अब आगे कैसे बढूँ। मैंने आखिरकार पानी तो ढूंढ लिया लेकिन यह तो जंतुओं से घिरा हुआ है। मैंने अपने हृदय को समझाया कि हर किसी को पानी का अधिकार है। मैं यूँ ही उन्हें भगा नहीं सकता और उन्हें इससे वंचित नहीं कर सकता। प्रकृति लोगो को जीने यापन के लिए प्रचुर मात्रा में संसाधन उपलब्ध कराती है। लेकिन मैं उन धागों में से हूँ जो अपना जाल खुद बुनता है। मैं उस बिंदु से बेहतर नहीं हूं जो कि मैं खुद को इसका स्वामी मानता हूं। मैं अपने हाथों से पानी लेता हूं और इसे घर से लाई हुई छोटी सुराही (बोतल) में डाल देता हूं। चुनौती का पहला चरण मिल गया। अब मुझे खाने की तलाश करनी चाहिये।
मैं रास्ते पर चलता गया, इस उम्मीद में की मुझे कुछ खाने का मिल जाए। अब जबकि दोपहर भी बीत गई है, मेरे पेट में भूख बढ़ती है। मैं रास्ते के दोनों तरफ देखता हूँ। पर लगता है खाना जंगल में ही है। हम प्रायः आसान रास्ते की तलाश करते है लेकिन यह वह रास्ता नहीं होता जो सफलता कि ओर ले जाए? ( हर वो पर्वतारोही जो पथ पर आगे बढ़ते हुए पहाड़ पर चढ़ता है वो प्रथम पर्वतारोही नहीं होता जो पहाड़ की चोटी पर पहुंचा हो) छोटे रास्ते आपको अपने लक्ष्य तक जल्दी पहुँचाते है। इस सोच के साथ कि कुछ वक्त के बाद मैं यह रास्ता छोड़ दूंगा और जल्द ही मुझे केले तथा नारियल के पेड़ मिल जायेंगे, और मैं उन्हें अपना खाना बना लूंगा। मुझे उसी शक्ति और भरोसे के साथ उन पेड़ों पर चढ़ना होगा जिस भरोसे और शक्ति के साथ मैं इस पर पहाड़ चढ़ा हूँ। मैं एक बार प्रयत्न करता हूँ, दो बार करता हूँ, तीन बार करता हूँ और सफल हो जाता हूँ। मैं अपनी झोपड़ी में वापस जाता हूं क्योंकि मैंने अपनी पहली चुनौती पूरी कर ली है।